प्रेम ही परमात्मा है और उसे पाने का सूत्र भी प्रेम ही है: सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज
- Deepak Singh
- Oct 28, 2023

साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज राँजड़ी, जम्मू में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को अध्यात्म रस में सराबोर करते हुए कहा कि प्रेम ही परमात्मा है और उसे पाने की सूत्र भी प्रेम ही है। प्रेम का धातु क्या है। कोई पूछे की सबसे बड़ी चीज दुनिया में क्या है तो कहना होगा कि प्रेम ही सबसे बड़ी चीज है। प्रेम हैवान को इंसान बना देता है। प्रेम इंसान को भगवान बना देता है। प्रेम सदियों की दुश्मनी को मिटा देता है। ऐसा क्या है प्रेम में, जो हमें प्रभु से मिला देता है। यह प्रेम क्या करता है। एक रानी थी। वो बड़ी सुंदर थी। लेकिन राजा बूढ़ा था। दासी उसका सिंगार कर रही थी। उसने कहा कि तुम्हारी सुंदरता देखते हुए राजा तुम्हारे काबिल नहीं है। इस राज्य में एक ब्राह्मण है। वो बहुत सुन्दर है। वो तुम्हारे योग्य था। एकाएक रानी के हृदय में उस ब्राह्मण के प्रति एक भाव उत्पन्न हो गया। उसी के भाव में वो डूबी रहती थी। एकाएक उस ब्राह्मण के हृदय में रानी के प्रति एक आकर्षण पैदा हो गया। इसका मतलब है कि जो हमारे प्रेम की तरंगें हैं, वो बड़ी प्रबल हैं। आप जिसका भी ध्यान करेंगे, आपकी तरंगें उसके पास जायेंगी। प्रबल प्रेम के बस में प्रभु का नियम भी बदल जाता है। बिना देखें, बिना बूझे हम सब परमात्मा का ध्यान करते हैं। सबसे पहले परमात्मा के प्रति हमारे हृदय में प्रेम तब उत्पन्न होता है, जब हम उसके लिए सोचते हैं। तो हमारी तरंगें परमात्मा तक पहुँचती हैं। आप अंतःकरण की तरंगों को मामूली न समझें। वो तरंगें परमात्मा तक पहुँचती हैं। तो वो दोनों एक दूसरे के विचारों में डूबे रहते थे। एक-दूसरो को उन्होंने देखा भी नहीं था। धीरे-धीरे उस ब्राह्मण के प्रेम का आकर्षण रानी को अपनी तरफ खींचने लगा। कोई शारीरिक संबंधन नहीं। प्रेम में आनन्द है। वासना में पीड़ा है। वासना में भय है। तो अनायास रानी उस ब्राह्मण के पास पहुँची और उससे प्रेम करने लगी। राजा को जब पता चला तो वो गुस्सा हुआ। वो तलवार लेकर वहाँ पहुँचा और ब्राह्मण पर कई वार किये। ब्राह्मण पर कुछ असर नहीं पड़ा। राजा ने पूछा कि हे पापात्मा, मेरे ये प्रहार तुमपर कोई असर क्यों नहीं डाल पा रहे। बोला-हे राजन, मेरे अन्दर का मैं खत्म हो चुका है। मैं रानीमय हो गया हूँ। आदमी का सुख-दुख तब तक है, जब तक उसमें अहंकार है, जब तक उसमें मैं है। इसलिए यहाँ बोला कि गुरुमय हो जाओ। फिर राजा ने रानी पर प्रहार किये। रानी भी नहीं मरी। राजा ने पूछा-हे व्यभिचारिनी, तू पति को त्यागकर पर-पुरुष से प्रेम कर रही है। मेरे शस्त्र तुमपर प्रभावित क्यों नहीं हो रहे हैं। बोला-हे राजन, मैं ब्राह्मणमय हो चुकी हूँ। जो जिसका भी ध्यान करेगा, उसका रूप हो जायेगा। लोग लैला-मजनू को बहुत आदर भाव से देखते हैं। मजनू बहुत सुंदर था। लैला सांवली थी। धीरे धीरे लैला के हृदय में मजनू का प्रेम जगा। मजनू के हृदय में लैला के प्रति आकर्षण पैदा हो गया। वो वासना रहित प्रेम था। इसलिए लोग उसे घृणा की दृष्टि से नहीं देखते हैं। लैला रोज उसे कटोरा भेजती थी हलवे का। धीरे-धीरे 2 मजनू हो गये। वो 2 कटोरे भेजने लगी। मजनू बढ़ने लगे। धीरे धीरे 100 मजनू हो गये। लैला सबके लिए हलवा भेजने लगी। लैला समझदार थी। दासी ने लैला को कहा कि वो मस्जिद में है। उस दिन उसने कटोरा और खंजर भेजा। बोला कि बोलना कि लैला को एक बीमारी हो गयी है। मजनू के जिगर का खून चाहिए। सब भाग गये। कौन जिगर का खून देना था। मजनू बैठा रहा। बड़ा दुर्बल था। दासी ने कहा कि सब चले गये। तुम क्यों नहीं गये। बोला कि मैं मजनू हूँ। दासी ने कहा कि लैला की बीमारी को ठीक करने के लिए मजनू के हृदय का खून चाहिए। उसने कमीज उतारी, कहा कि ले लो। दासी चली गयी। रानी को आकर बोला कि आज मैंने मजनू देख लिया। वहीं है। बाकी सब भाग गये थे। लैला बड़ी तेजी से मस्जिद में पहुँची। जब वहाँ पहुँची तो मौलवी दरवाजे के पास बैठकर इबादत कर रहा था। लैला भागकर वहाँ पहुँची तो धर्म ग्रंथ को गिरा दिया। मौलवी गुस्सा हुआ, कहा-बदतमीज लड़की। मैं खुदा की इबादत में था। तूने मेरा ध्यान हटा लिया। लैला मजनू तक पहुँचने वाली थी। नहीं मिली। वापिस आई। बोला कि क्या कहा आपने। मैं एक इंसान के प्रेम में यह भी भूल गयी थी कि कहाँ पर हूँ। तुम्हें कैसा याद आया कि मैं यहाँ से गुजरी हूँ। साहिब ने प्रेम पर बहुत कुछ कहा। प्रेम में अपना वजूद नहीं रहता है। जिसमें जिसका प्रेम है, वो वहीं रहेगा। बाकी चीजें भूल जाता है और एक ही चीज में एकाग्र हो जाता है। अपने को मिटाना पड़ता है।