मन की तरंगों से दुख और सुख होता है, इच्छाओं की पूर्ति ही सुख है और इच्छाओं का पूरा न होना ही दुख है: सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज

साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज सुंगल रोड़, अखनूर जम्मू में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि मन की तरंगों से दुख और सुख होता है। इच्छाओं की पूर्ति ही सुख है और इच्छाओं का पूरा न होना ही दुख है। वो सब मायाबी है। जो भी सुख है वो दुख मिश्रित सुख है। पर सुमिरन में आप सुखी हैं। जब आप सुमिरन करते हैं उस समय आप संकल्प रहित हो जाते हैं। लहर समुद्र की वृत्ति नहीं है। समुद्र शांत है। हवाएँ आती हैं तो लहरें उठती हैं। इस तरह मन की कल्पनाएँ उत्पन्न होती हैं दुख होता है। मान लो कोई कल्पना आ गयी जो कार्य पूर्ण हुआ तो सुखी हो जाते हैं। और कोई जो काम पूरा नहीं हुआ हो वो कल्पाना आ जाए तो दुखी हो जाते हैं। आत्मा का किसी भी कोण से सुख दुख से कोई भी संबंध नहीं है। लेकिन यह मन 24 घंटे चंचल है। इसके अन्दर भाव उठते रहते हैं। पर जब आप सुमिरन करते हैं तो आप शांत हो जाते हैं। आप सुखी हो जाते हैं। आपको कहीं से सुख आहुत नहीं करना है। आपमें सुख है। जैसे कहीं आपको रोग हो जाता है। किसी खान-पान से, मौसम के कारण, सर्दी से, गर्मी से रोग आया तो आप दुखी हो जाते हैं। आप सेहत की तलाश करते हैं। पुराने जमाने में जब भी कोई किसी से मिलता था तो हाल चाल पूछता था। पहले पूछता था कि सेहत ठीक है न। यह सेहत आपके अन्दर थी। इस तरह सुख आपके अन्दर है। आपके अन्दर सुख कहाँ से आय़ा। आत्मा आनन्दमयी है। आत्मा में सर्वत्र आनन्द ही आनन्द है। पर उस आनन्द को मन और माया ने आच्छादन किया है। क्यों किया है। क्योंकि वो चाहते हैं कि आप आत्मानुभव नहीं करें। आप जगत के पदार्थों से ही आनन्द अनुभव करें। ताकि आप इसमें उलझे रहें। इसलिए मन नाना संकल्प-विकल्प उठाता है और आपकी आत्मा के आनन्द को गुम कर देते हैं। सुमिरन से सुख कैसे होता है। आग में रोशनी है ही है। आहुत नहीं करना है। वायु में सपन्दन है ही है। इस तरह आत्मा में आनन्द है ही है। क्योंकि यह परमात्मा का अंश है। कहीं से आनन्द आहुत नहीं करना है। बस, मन के संकल्प-विकल्प रोक लिए तो आनन्द ही आनन्द है। इसलिए सब ध्यान ही एकाग्र करना बोल रहे हैं। आपको अपने पास रहना है। अपने से दूर नहीं होना है। आप किसी स्थान की कल्पना करते हैं तो अपने से दूर हो जाते हैं। आपका कहीं रोड़ पर झगड़ा हुआ। आप सोचने लगे तो आप रोड़ पर पहुँच गये। ध्यान वहाँ पहुँच गया। आप अपने से दूर हो गये। उस समय जो दुख हुआ था, चित्त ने फिर से वो दुख दे दिया। आप कहीं घूमने गये। वहाँ मोहक दृश्य थे। आप उससे आनन्दित हुए। जब वो बात याद आ जाती है तो आप आनन्दित हो जाते हैं। यह केवल मन की तरंगों के कारण ही हम सब सुख-दुख की अनुभूति कर रहे हैं। आनन्द तो आपके पास है। पर आपके पास का आनन्द मन आपको कभी भी अनुभव नहीं होने देगा। जब आपको अपने अन्दर का आनन्द अनुभव हो गया तो जगत के सभी पदार्थों को आप छोड़ देंगे।

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